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उत्तर प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा रसातल में चली गयी है|राजनैतिक विद्वेष ने योग्यता के मुँह पर करारा तमाचा मारा है| ७२,८२५ योग्य अभ्यर्थी ठगे गए हैं|भारत का संविधान हमें शोषण के विरुद्ध अधिकार देता है और मदांध राजसत्ता जी भरकर हमारा शोषण करने के उपरान्त हमें दूध में पड़ी हुई मक्खी की तरह बाहर फेंक देती है|न्यायालय यदि मूकदर्शक नहीं तो निष्क्रिय रह कर उस शोषण में बराबर का भागीदार बनता है और लोकतंत्र का चौथा मजबूत स्तम्भ सूबे की प्राथमिक शिक्षा को शिक्षामित्रों के हांथो घुट घुट कर कुत्ते की मौत मरते हुए देख कर भी कुछ नहीं करता|कौन कहता है की खच्चर को घोडा बनने का अधिकार नहीं है किन्तु इसका विकल्प घोड़े की सम्पूर्ण प्रजाति का जातिगत संहार तो नहीं है? जिन लोगों ने अपनी योग्यता के दम पर न सिर्फ हाई स्कूल,इंटर,स्नातक.परास्नातक और शिक्षास्नातक की परीक्षाए उत्तीर्ण की बल्कि अपनी योग्यता के दम पर यूपीटीईटी और सीटीईटी की परीक्षा सूची में भी अपना स्थान बनाया बनाया| पूर्ववरती सरकार के साथसाथ वर्तमान सरकार के कार्यकाल मे 2-2 बार आवेदन किया| बेरोजगार होते हुये भी हजारो रुपए खर्च किए और विगत 1.5 वर्षों से आर्थिक सामाजिक और मानसिक उत्पीड़न का दंश झेल रहे है|क्या वास्तव मे आज न्यायपालिका भी कार्यपालिका के हाथों की कठपुतली मात्र बन कर रह गयी है?
फिर ऐसे मे यह उन मेधावियों की मेधा का अपमान नहीं तो और क्या है?
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